लेखनी कहानी -12-Jun-2024
शीर्षक - समझौता.…. एक सहयोग
हम सभी जीवन के भाग्य और कुदरत के रंग हम सभी एक मुसाफिर हैं आज हम सभी जीवन और जिंदगी के रंगमंच पर किरदार निभाते हैं बस जरूरत तो एक-दूसरे के संग साथ रहते हैं । आधुनिक समय में हम सभी जानते हैं कि सच का मानक ही हमारे जीवन का भाग्य और कुदरत के रंग का एक समझौता ही सच कहता हैं।
सच तो कुदरत और भाग्य और हमारे जीवन का सच एक मुसाफिर रहता है क्योंकि हम सभी सांसारिक प्राणी हैं और हमारे जीवन में मोहब्बत चाहत इश्क हमारी सोच और मन के भावनाओं से होता है जहां इस संसार में ऐसी ही सोच के साथ रचना और अलंकार की सोच थी वह जीवन में भाग्य कुदरत को मेहनत और कर्म के साथ जोड़कर देखते थे परंतु हम सभी जीवन में एक मुसाफिर की तरह जन्म लेते हैं और संसार में आकर सभी सांसारिक रीति रिवाज और मोह माया के साथ हम जीवन जीते हैं।
रचना और अलंकार भी समाज के विभिन्न अंगों के साथ अपनी सोच और समझ के साथ जीवन में सभी सामाजिक और गतिविधियों के साथ जीवन जीते हैं परंतु आपसी समझौते के साथ रचना और अलंकार एक लिविंग रिलेशन में रहते हैं क्योंकि रचना भी एक अनाथ लड़की की अलंकार भी इस अनाथालय में अपने माता पिता की छोड़ी भी संतान था। अलंकार अपनी मां के बिन ब्याही मां के पैदा हो चुका था। तब अलंकार की मां को यह कहा गया था कि अगर यह बेटा यह लड़का तेरे साथ रहेगा तो हम तुझसे विवाह नहीं करेंगे। समाज की लोक लाज और अपनी उम्र की चिंता से अलंकार की मां ने अलंकार को भी अनाथ आश्रम की दहलीज पर छोड़ दिया था।
अलंकार जीवन में एक मुसाफिर की तरह जीवन व्यतीत करता है परंतु उसकी जिंदगी में रचना का आगमन होता है और वह रचना की प्यार और इश्क में अपने आप को जीवन का सच और अच्छा इंसान बनने के लिए वह रचना के साथ रहता है । और अलंकार और रचना लिविंग रिलेशन के साथ-साथ एक दूसरे से समझौता कर शादी कर लेते है। आधुनिक समाज में आज की जीवन में समाज केवल यह देखता है कि नारी के साथ कोई मर्द या पुरुष है या नहीं क्योंकि आधुनिक समाज का एक घिनौना सच यह है कि कोई नई अगर जीवन की राह में अकेला चलती है तो उसके लिए अच्छी निगाहों से उसको नहीं देखा जाता और अकेली नारी के साथ जीवन में कई मुश्किलें पैदा हो जाती है और हम सभी कहानी को पढ़कर समझते हैं एक नई अकेली नारी किस तरह जीवन को जी सकती है।
रचना और अलंकार अपने जीवन में बहुत खुश थे और और दोनों ने एक साथ जीवन की राह पर चलने की सोच बना रखी थी भला ही जीवन एक मुसाफिर की तरह हम सभी का होता है बस हमारी सोच और समझ अलग-अलग हो सकती है परंतु बचपन से जवान और जवानी से बुढ़ापा और अंत समय की ओर हम चल पड़ते है। मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच और सरल शब्दों में हम कह सकते हैं की रंजना और अलंकार आज के आधुनिक युग में दोनों अपने जीवन की अनाथ आश्रम की जिंदगी को दोहराना नहीं चाहते थे और वह एक मुसाफिर की तरह दोनों मिलकर जिंदगी का सफर एक दूसरे के साथ सच और खुशी के साथ बिताना चाहते थे।
शब्दों की गरिमा के साथ ही हम एक मुसाफिर का जीवन जीते हैं भला ही जीवन के कुछ वर्षों तक हम सभी एक दूसरे का साथ और समझोता या सहयोग देते हैं परिवार बनता है ऐसे ही रचना और अलंकार की सोचती वह दोनों एक साथ रहते हुए अपना परिवार बनाते हैं और रचना एक बेटे को जन्म देती है और अलंकार और रचना का परिवार पूरा हो जाता है वह अपने जीवन एक नाम देते हैं और अपने बेटे का नाम रचित रखते हैं और रचित की परिवारिश एक अच्छे माता-पिता की तरह करते हैं।
एक मुसाफिर शब्द का अर्थ यही है कि हम सभी नई और पुरुष एक मुसाफिर ही होते हैं जो जीवन के सफर में एक साथ बंधन में बंध कर जीवन की मोह माया और आकर्षक में शारीरिक मानसिक स्तर के साथ जीवन जीते हैं और सांसारिक भोग भोंगते हुए अपने जीवन को एक नाम देते हैं। और एक मुसाफिर का जीवन की राह को कुदरत और भाग्य के साथ एक सच बना देते हैं।
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच और एक मुसाफिर की राह को सच करता है और हम सभी को रचना और अलंकार की तरह अपने जीवन को एक उद्देश्य और एक रहा देनी चाहिए जिससे हमारे जीवन में अनाथालय और अनाथ आश्रम जैसी सोच और समझ बदले और अधिकार और रचना की माता-पिता की तरह कोई बच्चा अनाथ आश्रम में ना छोड़ा जाए हम सभी जीवन को एक अच्छे और समझदारी के साथ रंग भरे क्योंकि हम सभी मानवता के साथ जीवन में एक मुसाफिर की तरह आते हैं और अपना किरदार रंगमंच पर बिताकर संसार के मोह माया से दूर पांच तत्व में विलीन हो जाते हैं।
एक सच कुदरत का और भाग्य के अनुसार रचना और अलंकार समझाते हैं कहानी की माध्यम से की जीवन में हम सभी को जीने का हक है परंतु अनाथ शर्मा अनाथालय से व्यवस्था को हम ना पहचाने और जीवन में एक नाम और एक संग साथ होना जरूरी हैं। एक मुसाफिर ही हम सभी को कहता है कि आओ जीवन को जिए और एक मुसाफिर की राह को पहचानते हुए हम अपने भाग्य और कुदरत के साथ समझौता करने के सच को समझते हैं।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र